बर्ड फ्लू को एवियन इन्फ्लूएंजा भी कहा जाता है और यह पोल्ट्री में टाइप ए इन्फ्लुएंजा वायरस के कारण होता है। यह रोग दुनिया भर में होता है और पक्षियों की सभी प्रजातियां इस रोग के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं। इन्फ्लुएंजा वायरस पोल्ट्री फार्म की स्थितियों के अनुसार भिन्न होते हैं और भयानक रूप लेते हैं। वायरस के एच 5 और एच 7 उपप्रकार को अत्यधिक घातक माना जाता है और यह फार्म के सभी पक्षियों को मार सकता है। भारत में वर्तमान स्थिति इस साल भी फ्लू का प्रकोप हिमाचल प्रदेश की जंगली बत्तखों में, … Continue Reading →
घर बैठे वीडियो कोर्स द्वारा केवल 600 रुपये में करें स्वच्छ दुग्ध उत्पादन
कोर्स की मुख्य विशेषताएं 1. अपनी गति से घर बैठे कोर्स करें 2. स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए बुनियादी और आसान टिप्स 3. पहले कुछ के लिए 80% की छूट, केवल 600 रुपये में उपलब्ध 4. कोर्स पूरा करने के बाद प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा 5. कोर्स सभी के लिए खुला है 6. कोर्स लेने के लिए यहाँ क्लिक करें क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ सफल डेयरी ब्रांड और डेयरी किसान 100 रुपये प्रति लीटर दूध या उससे अधिक कैसे कमाते हैं? ये किसान न केवल दूध को अधिक मूल्य में बेचते हैं, बल्कि इनके डेरी पशु भी काफी तंदुरुस्त … Continue Reading →
सर्दी के मौसम मेें पोल्ट्री का प्रबंध
सर्दियों के मौसम में वातावरण ठंडा हो जाता है जिसका पोल्ट्री के उत्पादन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सर्दियों में जब तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से कम चला जाता है तब बहुत सारी परेशनियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए बेहतर उप्त्पादन के लिए पोल्ट्री उत्पादकों को सरदियों के मौसम में निमनांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए। घर का उन्मुखीकरण एवं तापमान प्रबंध सर्दी के मौसम मे पोल्ट्री फार्म का निर्माण पक्षियों की सुविधा को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इमारत के अंदर हवा, धूप एवं रौशनी चारों ओर से आनी चाहिए … Continue Reading →
ब्याने के बाद पशुओं का बैठ जाना: मिल्क फीवर या दुधारू बुखार
दुधारू बुखार मुख्य रूप से ब्याने वाली डेयरी गायों का विकार है जो उच्च मात्रा में दूध देती हैं। यह एक चयापचय रोग है जो निम्न रक्त कैल्शियम स्तर (हाइपोकैलसीमिया) के कारण होता है। संकर तथा विदेशी नस्ल की गायों में इस विकार को प्रमुखता से देखा जा सकता है। इस बिमारी में किसानों को नुक्सान मुख्यता पशु के मर जाने से, दूध कम कर जाने से तथा इलाज के खर्चे से होता है। लक्षण सामान्य मामलों में गायों के सिर और अंगों की मांसपेशियों में कुछ प्रारंभिक उत्तेजना या कंपकंपी दिखाई देती है। फिर वे डगमगाते हैं … Continue Reading →
सिंथेटिक दूध (नकली दूध) : मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती
भारत लगभग 165 मिलियन टन दूध का वार्षिक उत्पादन कर विश्व में शीर्ष दूध उत्पादक देश है। लेकिन देश में सिंथेटिक दूध के पकडे आने की घटनाये भारत की इस उपलब्धि को बेकार बना देती है । तरल दूध शिशुओं तथा वृद्धो के लिए एक अनिवार्य पोषण आहार है । प्राकृतिक दूध के स्थान पर रासायनिक रूप से संश्लेषित दूधिया तरल (सिंथेटिक दूध) गंभीर चिंता का विषय है, डेयरी उद्योग विभिन्न प्रकार से दूध का परीक्षण करता है,जैसे कि दूध में वसा तथा दूध के अन्य घटक जैसे प्रोटीन, लाक्टोस आदि का निर्धारण करना पर ये परीक्षण किसी भी … Continue Reading →
कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती
कीटनाशक, किसानो के लिए कीट और रोगों के खिलाफ लड़ाई में अतिआवश्यक हैं। विश्व में लगभग 45% फसल कीट और रोगों द्वारा नष्ट हो जाती है। अतः विश्व में भोजन की मांग को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है, कि फसलों के विकास, भंडारण और परिवहन के दौरान रक्षा के लिए कीटनाशकों का उपयोग किया जाये । लेकिन कीटनाशकों के अंधाधुंध और विवेकहीन उपयोग से इन तत्वो के अवशेष खाद्य श्रृंखला तथा पर्यावरण में समाहित हो रहे हैं, जोकि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक संदूषण के लिए जिम्मेदार है। कीटनाशक तथा इसके अवशेष वसा में … Continue Reading →
दुधारू पशुओं में लहू मूतना या बबेसिओसिस रोग
यह एक घातक बीमारी है जिसका प्रसार किलनियों तथा चींचड़ों के द्वारा होता हैं इसलिए इसे टिक फीवर भी कहते हैं। बबेसिया परजीवी की चार प्रमुख प्रजातियाँ होती हैं तथा यह चारों प्रजातियाँ गाय तथा भैंस को प्रभावित करती हैं। इन सभी में से बबेसिया बाइजेमिना प्रमुख प्रजाति है जो भारतीय उप-महाद्वीप के पशुओं में बीमारी का मुख्य कारण है। फास्फोरस की कमी से नई ब्यांत या बयाने के करीब वाले दुधारू पशु में भी लहू मूतना देखा गया है पर उस स्तिथि में पशु में कोई ज्वर नहीं आता। विदेशी और संकर नस्ल के पशु इसके प्रति अति … Continue Reading →
पशुओं की आंत में पाये जाने वाले परजीवी एवं उनका उपचार
आंत में पाए जाने परजीवी अथवा अन्तः परजीवी पशुओं के शरीर के अन्दर पाये जाते हैं एवं परजीवी कृमि भौतिक संरचना के आधार पर दो प्रकार के होते हैं प्रथम चपटे व पत्ती के आकार के जिन्हें हम पर्ण कृमि एवं फीता कृमि कहते हैं दूसरे गोल कृमि जो आकार में लम्बे गोल बेलनाकार होते हैं। पर्ण कृमि यह परजीवी पत्ती के आकार की संरचना लिए होने के कारण पर्ण कृमि कहलाते हैं। इस वर्ग मे फैशियोला, एम्फीस्टोम एवं सिस्टोसोम पशुओं को हानि पहुँचाने वाली मुख्य प्रजातियां हैं। यह पशुओं के उप्तपादन को कम करने के … Continue Reading →
कैसे करें चूजों की ब्रूडिंग: कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु
कैसे करें ब्रूडर का निर्माण नवजात पक्षियों के आने से पहले फर्श पर कागज़ के उपर छोटे आकार की मक्की बिछा देनी चाहिए। बेहतर परिणाम के लिए उबले हुए ठंडे पानी में इलेक्ट्रोलाईट एंव एनरोफलोक्सेसिन जैसी एंटीबायोटिक मिलाएं। प्रत्येक ब्रूडर में चूजों को सामान्य रूप से बांटे। चूजों को ब्रडूर में डालने से पहले पानी में उनकी चोंच का पेमाने तय करें। पहले तीन में से दो दिन मक्की का बूरा और तीसरे दिन छोटे छोटे मक्की के दाने कम मात्रा में दें। तीसरे दिन के बाद मक्की में प्री-स्टार्टर फीड मिलाना … Continue Reading →
मादा पशु को गर्मी में लाने के लिए देशी नुस्खे
पशुओं के गर्मी में ना आने के कारण मादा गर्मी के लक्षण तब नहीं दिखा सकती है जब वह बहुत बूढ़ी हो या वह बिना मालिक के ज्ञान के मेल-मिलाप हो जाए I कभी-कभी पशु किसी भी संकेत के बिना गर्मी में आते हैं इसे "चुप्प गर्मी" कहा जाता है और भैंसों में ये आम तौर पर पायी जाती है । यदि फ़ीड पर्याप्त नहीं है या प्रोटीन, लवण या पानी की कमी है, तो पशु गर्मी में आने में विफल हो सकता है। गर्मी में लाने के लिए आपको मादा की फीड में सुधार करने की आवश्यकता होगी। पशुओं के पेट में कीड़ों क होना या बच्चेदानी … Continue Reading →